एक श्रेष्ठाचारी समाज की ओर

 

आज हर एक मानव सुरक्षित महसूस करना चाहता है जिसके लिए वह धन इकट्ठा करता है,साधन इकट्ठे करता है सुरक्षित महसूस करने लिए वह दौड़ रहा है,वह सब कुछ पाना  लेना चाहता है और वह भी जल्दी किसी भी तरह से।इस दौड़ मे वह अपना स्वास्थ्य भी गवा रहा. हैतो समबन्ध भी,वह अपना श्रेष्ठ आचरण और मानवीय मूल्यों को भी ताक पर लगा रहा है,

अगर हम  गौर से विचार करें तो देखा गया है,आज हर मनुष्य मृत है,शरीर चल रहे है सबके,पर आत्मा जैसे मर गई है सबकी।

उसके अंदर  से महसूसता की शक्ति जैसे खत्म हो चुकी है।


आज विकारों के वशीभूत मानव अपने स्वधर्म, और सर्व से अपने आतमिक नाते को भूला हुआ है, आज मनुष्य ने बहुत ज्ञान अवश्य प्राप्त कर लिया है पर वह.अपनी. सभ्यता और विनम्रता कहीं न कहीं भूल चुका है।

शिष्टाचार, आदर,सत्कार जो. कि मनुष्य जीवन का सौंदर्य.है वह जैसे मनुष्य के.जीवन से लोप हो चुके. है।वह अहंकारी. और उदंड बनता जा. रहा है,,जिसे वह विकास समझ रहा.है.वास्तव मे वह  जैसे अपने ही विनाश के प्रबंध रच रहा है।

निराकार शिव परमात्मा ,वर्तमान संगमयुग के समय इस सृष्टि पर अवतरित होकर मानव को जीवन के मूल्यों का,नैतिकता का,श्रेष्ठता का ज्ञान दे रहे है और उसे अपने ऊंच कर्त्तव्य की याद दिला रहे कि सद् भावना और प्रेम के द्वारा ही हम.सदाचार और श्रेष्ठाचार को फिर से जिंदा कर सकते है और जीवन के मर्म को सुख शांति प्रेम आनंद को जीवन मे अनुभव कर सकते और एक नए समाज का,दैवी संस्कृति का उदय कर सकते है,जहाँ एक धर्म,एक राज्य, एक कुल,एक भाषा होगी और वह ही राम राज्य कहलाएगा जहाँ हर एक मानव मूल्यों से ओतप्रोत होगा,अपने नैतिक अधिकारों को प्राप्त किए होगा, स्वतंत्र होगा,सम्मानीय होगा आत्मनिर्भर होगा।

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