Tuesday, June 9, 2020

contentment.here and now

An article from community Shiva Tribe. 



Most of our troubles are due to our passionate desire for and attachment to things that we misapprehend as enduring entities. We pin our happiness to people, circumstances, and things and hold onto them for dear life. We stress about the possibility of losing them when something seems amiss. Then we melt into grief when something changes ; a lay off, a breakup, or a transfer. In trying to hold on to what’s familiar, we limit our ability to experience joy in the present. A moment can’t possibly radiate fully when you’re suffocating it in fear.
When you stop trying to grasp, own, and control the world around you, you give it the freedom to fulfill you without the power to destroy you. That’s why letting go is so important ; letting go is letting happiness in.
Stop running after people or things. Let go off the desire for everything you don’t have. No, you won’t always get exactly what you want, but remember this: There are lots of people who will never have what you have right now. The things you take for granted, someone else is praying for. Happiness never comes to those who don’t appreciate what they already have. So stop complaining , stop comparing yourself to everyone else. Social comparison is the thief of happiness. You could spend a lifetime worrying about what others have, but it wouldn’t get you anything.
Accept the moment for what it is. Don’t try to turn it into yesterday; that moment’s gone. Don’t plot about how you can make the moment last forever. Just seep into the moment and enjoy it, because it will eventually pass. Nothing is permanent. Fighting that reality will only cause you pain. Believe now is enough. It’s true ; tomorrow may not look the same as today, no matter how much you try to control it. A relationship might end. You might have to move. You’ll deal with those moments when they come. All you need right now is to appreciate and enjoy what you have. It’s enough.!

Tuesday, June 2, 2020

Ocean of knowledge in our Urn(ज्ञान सागर से ज्ञान स्वरुप तक )



Understanding Whole Knowledge in Summary:-

  • Variety Drama

    Souls have different Roles and occupations(different interests and jobs depending upon that)finishes overestimations and underestimation tendencies.
  • Laws of nature
  1. Teaching limitations and blessings of different times of the day,Good time for learning,remembering and doing things,
  2. Understanding Brain,Heart  & other bodily functions. kidney's role in toxin removal,liver's role bloodflow mechanism's relation to different kinds of feelings we create during the day.Cosmos Relation to our bodies. How planetory movements/stars affect healthy functioning of body based on the feelings we create.We change the feelings/attitude,body becomes healthy,planets/stars comes in our favour.
  • Laws of Govt.

    Same for all,Leave critisicm or blaming attitude.Serve your creation ,Spread vibrations,empower  your creation. 
  • Body

    Timely rest,excercise and nutrious food.
  • Life

    Sufficient Wealth,,facilities,goodwill & success in your Endeavours.

Path of devotion is entirely different,there you sing God's praise,perform
rituals(कर्म काण्ड),perform charity(दान पुण्य ) but don't get the Knowledge:-
  • Knowledge of Karma,which Karmas are positive,negative or neutral(कर्म अकर्म विकर्म का ज्ञान )
  • Knowledge of Power of Mind(inner powers,unlimited potential of mind )
  • Knowledge of Past Births(divine being,deity as first birth in the beginning of world cycle)
  • Knowledge of Human Psychology(definitions of right/wrong through different perspectives)
  • Knowledge of Neutralizing Sins(negative karmas)by doing antidote karmas with the same souls with whom there is account and letting go of any past burdens.
  • Knowledge of God(What karmas are dear to God ,what makes us come closer to him Selfless,Heartful karmas,How He Listens to our silent prayers and How he silently helps us in life's situations and help us rise beyond our limitations.

Purpose and investments for life

1)Progress & Happiness--just for self or for all?

2)Seeing Relationships through different angles.
  • Valuable,asset[love,care,support],
  • quality time & energy[What I give,comes back],
  • Feel responsible and empathetic with them[Only you can fulfill their needs,you are irreplaceable in their life,Its your part].
3)Our conducts while we being on journey of life :
  • Where is our focus(qualities or lables or profit/loss),
  • Gratefulness for life and its opportunities to be alive (to play,laugh,love,smile,care,give)  or Competetive/Ambitious attitude(me & mine,racing attitude)

Things to Keep in mind in various scenerios:-
  • Where We need to show right path to others ...Self equipped with the knowledge of right/wrong.Should be in Lawful state at that time and underline good manners at that time,don't come in rage.
  • Where we need to save time.Free yourself from any waste /negativity .Fulfill responsibilities and teach others through your living example.
  • Where we need to avoid entangling..Remember we just have different views and its ok.
  • Someone getting dependent on you or you getting dependent on them ,remember neither we will influence or attract others in our qualities nor get impressed with others for their attainments or qualities.We need to follow our own journey. 
Thanks & Om Shanti,
Love & Light.
In Baba's yaad.

Sunday, May 31, 2020

ब्रह्मचर्य आश्रम



इस आश्रम में व्यक्ति होश सम्भालने के बाद गुरु की सेवा में संयम व अनुशासन पूर्वक रहते हुए उचित एव योग्य हर प्रकार की विद्दाओ का अध्ययन करके अपने भावी जीवन में प्रवेश की उचित तैयारी करता था | इस प्रकार सभी सांसारिक प्रभावों से मुक्त और निर्लिप्त रहना ही ब्रह्मचर्य है |
जीवन का यह भाग सीखने और भविष्य की तैयारी का आधार माना जाता है इसमें इन्द्रीय –संयम ,
मन पर काबू रखना , व्यर्थ के माया – मोह, विषय-वासना और भोग-विलास से दूर रहने की शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता था,इस अवस्था में दी गई शिक्षा के आधार पर शेष जीवन स्वत: ही अनुशासित रहता था | जीवन में नग्नता व अश्लीलता नही आ पाती थी |

आत्मनिर्भर व्यक्ति की पहचान




 दुख और सुख तो सभी पर पड़ते हैं इसलिए अपना पौरूष मत छोड़ों क्योंकि हार-जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर होती है।
स्वावलंबी मनुष्य सफलता या असफलता की परवाह किए बिना अनवरत प्रयासरत रहते हैं और बाधाओं, विघ्नों को चीरते हुए अपना मार्ग प्रशस्त करते जाते हैं।कंटाकाकीर्ण पथ पर दृढ़ता से आगे बढ़ते जाते हैं।
पथ के शूल उनके कदमों को रोक नहीं पाते और अंतत: सफलता उनका वरण करती है।

स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर व्यकित ही सही अर्थो में जान पाता है कि संसार में दुःख पीड़ा क्या होते है तथा सुख- सुविधा का क्या मूल्य एव महत्त्व हुआ करता है |वह ही समझ सकता है कि मान अपमान किसे कहते है ? अपमान की पीड़ा क्या होती है ? परावलम्बी व्यक्ति को तो हमेशा मान-अपमान की चिन्ता त्याग कर , व्यक्ति होते हुए भी व्यक्तित्वहीन बनकर जीवन गुजार देना पड़ता है | एक स्वतंत्र व स्वावलम्बी व्यक्ति ही मुक्तभाव से सोच-विचार कर के उचित कदम उठा सकता है | उसके द्वारा किए गे परिश्रम से बहने वाले पसीने की प्रत्येक बूंद मोती के समान बहुमूल्य होती है | स्वावलम्बन हमारी जीवन – नौका की पतवार है | यह ही हमारा पथ – प्रदर्शन है | इस कारण से मानव – जीवन में इसकी अत्यन्त महत्ता है |



महानता की ओर




करूणा रक्षा में सहायक है – भगवान ने करूणा की भावना मनुष्य को इसलिए दी है ताकि यह  संसार बना रहे |
अगर कोई राक्षस किसी बेकसूर को मारे, या किसी की रोटी छीने तो यह करूणा आदमी को प्रेरणा देती है कि बेकसूर की रक्षा हो | न्याय की रक्षा करना धर्म है |

दयावान किसी को कष्ट में देखकर चुपचाप नहीं बैठ सकता | उनकी आत्मा उसे मज़बूर करती है कि दयावान दया करने से पहले अपना हानि-लाभ निश्चित करे |
यहाँ तक कि वह किसी के प्राण बचाकर भी उसके बदले उससे कुछ नहीं चाहता | दया निस्वार्थ ही होती है |

करुणा से महानता की ओर – संसार में जितने भी महान इन्सान हुए हैं, सबके जीवन में करूणा का अंग अवश्य रहा है | भगवान बुद्ध ने राजपाट छोड़कर दुखी लोगों के दुःख दूर करने में अपना जीवन लगा दिया | नानक ने संसारिकता त्यागकर ही महानता अर्जित की |
गाँधी जी ने अपनी वकालत त्यागकर देशवासियों के लिए कर्म किया, तभी सारे देश ने उन्हें अपना बापू माना | वास्तव में जब भी कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर जनहित का आचरण करता है, वह हमारे लिए पूज्य बन जाता है |

मन के जीते जीत है ,मन के हारे हार



मन के दो पक्ष : आशा-निराशा – धुप-छाँव के समान मनव-मन के दो रूप हैं – आशा-निराशा | जब मन में शक्ति, तेज और उत्साह ठाठें मारता है तो आशा का जन्म होता है | इसी के बल पर मनुष्य हज़ारों विपतियों में भी हँसता-मुस्कराता रहता है |निराश मन वाला व्यक्ति सारे साधनों से युक्त होता हुआ भी युद्ध हार  बैठता है | पांडव जंगलों की धुल फाँकते हुए भी जीते और कौरव राजसी शक्ति के होते हुए भी हारे | अतः जीवन में विजयी होना है तो मन को शक्तिशाली बनाओ |

मन को विजय का अर्थ – मन की विजय का तात्पर्य है – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे शत्रुओं पर विजय | जो व्यक्ति इनके वश में नहीं होता, बल्कि इन्हें वश में रखता है, वह पुरे विश्व पर शासन कर सकता है |
स्वामी शंकराचार्य लिखते हैं – “जिसने मन जो जीत लिया उसने जगत को जीत लिया |”
 मन पर विजय पाने का मार्ग – गीता में मन पर नियंत्रण करने के दो उपाय बाते गए हैं – अभ्यास और वैराग्य |
यदि व्यक्ति रोज़-रोज़ त्याग या मोह-मुक्ति का अभ्यास करता रहे तो उसके जीवन में असीम बल बल आ सकता है |
   
मानसिक विजय ही वास्तविक वियज – भारतवर्ष ने विश्व को अपने मानसिक बल से जीता है, सैन्य-बल से नहीं | यही सच्ची विजय भी है |भारत में आक्रमणकारी शताब्दियों तक लड़-जीत कर भी भारत को अपना न बना सके, क्योंकि उनके पास नैतिक बल नहीं था | शरीर-बल से हारा हुआ शत्रु फिर-फिर आक्रमण करने आता है, परंतु मानसिक बल से परास्त हुआ शत्रु स्वयं-इच्छा से चरणों में लोटता है |



|


Monday, May 25, 2020

आध्यात्म द्वारा जीवन में समता


आध्यात्म द्वारा जीवन में समता

मनुष्य का स्वभाव है,कुछ न कुछ पकड़ने का अपनी पहचान बनाने का,अपने को उस गुड फीलिंग में रखने का।   ये मन की आदत है ,कोई न कोई चीज़ को पकड़ने का और उसको मैं और मेरे  के अंतर्गत ,लेने का
इससे वह सुरक्षित महसूस करता है। पर आध्यात्म हमे सिखाता है निश्चय बुद्धि बनो,मन के इस मानसिक खेल से छूटो(become No Mind ,conditioning से छूटो) ।  मन प्रयास करता है सब कुछ पा लू ,सब कुछ जान लू ,अपना प्रबंध कर लू ,सुरक्षित हो जाऊं। पर अध्यात्म कहता है सब कुछ पहले जान लेने से खेल का मज़ा ही ख़तम हो जाएगा। यह जीवन रियल नहीं रहेगा। जीवन में मिलने वाली शिक्षाएं, जीवन में गहरी नहीं समाऐंगी(Life is a school & we are all students) । जीवन में अचानक कुछ मिल जाए तो जो उसका मजा कुछ और ही होता है। उत्सुकता होती है, वह भी खत्म हो जाएगीी(Life is full of surprises & opportunities & we are here to enjoy every moment of life).साथ ही साथ हमारा यह जीवन सिर्फ हमारा नहीं बल्कि हम एक दूसरे पर निर्भर हैं सूक्ष्म रीति से, यह हमारे जीवन को संपूर्ण और सुंदर बनाता है।(Life is interconnected) जीवन में  मानवीय मूल्यों को जिंदा रखता है, जीवन में आशाओं को, उमंगो को, रौशनी  को, संगीत को जिंदा रखता है।(Life is a 🎶music & a Beautiful Dance 💃)हमारे संपूर्ण  समाज को समता में लाता है। धर्म में विभाजन, राजनीतिक में खिंचा तान, परिवारों में मतभेद, समाज और देश की जो वर्तमान दशा है उसका कारण यह भिन्नता ही तो है, अमीर और अमीर होता जा रहा है, गरीब और गरीब हो रहा है , एक तरफ साक्षरता इतनी बढ़ गई है देश/विश्व तकनीको की ऊंचाइयों को छू रहा है, और दूसरी ओर किसी को प्राथमिक शिक्षा भी नहीं मिल रहीं, एक और लोग धर्म के नाम पर   इतने बड़े बड़े संस्था चला रहे है। दूसरी ओर धर्म का मूल ही आम आदमी भूला हुआ है। एक और किसी मनुष्य के पास इतनी ताकत है ,सत्ता है जो अनेकों को प्रभावित कर सकता है। दूसरी ओर  आम जनता को उसके नैतिक  अधिकार भी सहज प्राप्त नहीं है । एक  ओर परिवार का एक सदस्य सभी जिम्मेदारियों को उठाकर भी, दिन-रात अपनी नींद चैन का त्याग कर भी मेहनत में लगा हुआ है और दूसरी ओर अन्य सदस्य संगदोष के कारण अपने  लापरवाह व्यवहार द्वारा बड़ों का आदर सम्मान रखना भी भूलते जा रहे हैं। ऐसी अनेक असमानताओं और भिन्नतायों को अध्यात्म द्वारा संयमित किया जा सकता है।

अध्यात्म के माध्यम से जीवन को संतुलित और संयमित किया जा सकता है। विचारों को महान किया जा सकता है। जीवन  में प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया जा सकता है। एक स्थाई, शाश्वत, सुखद जीवन की कल्पना की जा सकती है। भाईचारे और बंधुत्व भाव को बढ़ाया जा सकता है। एक धर्म, एक राज्य, एक कुल की स्थापना की जा सकती है। जो कि निि:संदेह स्वर्णिम भारत ही होगा, जिसकी कल्पना सभी महापुरुषों ने की, परमात्म शक्ति और आत्मिक शक्ति के द्वारा वह समय अब दूर नहीं  जब हर मन में श्रेष्ठ विचार होंगे, सद् विचार होंगे, सभी श्रेष्ठ कर्म धारी, पुण्य आत्मा और पवित्र आत्मा बन जाएंगे और हमारा विश्व एक सुंदर स्वर्ग बन जाएगा।और यह सब संभव होने का एकमात्र उपाय है मन को आध्यात्म के माध्यम  के द्वारा सही शििक्षा देना ,उसे ऊंचे  विचारों में उठाना और योग/ध्यान के माध्यम से उसे सशक्त बनाना. 
ओम् शांति