मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुँएं में उड़ाता चला गया बरबादियों का सोग़ मनाना फ़िज़ूल था - २ बरबादियों का जश्न मनाता चला गया मैं ज़िंदगी... जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया - २ जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया मैं ज़िंदगी... ग़म और खुशी में फ़र्क न महसूस हो जहाँ - २ मैं दिल को उस मुक़ाम पे लाता चला गया मैं ज़िंदगी...
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