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Showing posts from May, 2020

ब्रह्मचर्य आश्रम

इस आश्रम में व्यक्ति होश सम्भालने के बाद गुरु की सेवा में संयम व अनुशासन पूर्वक रहते हुए उचित एव योग्य हर प्रकार की विद्दाओ का अध्ययन करके अपने भावी जीवन में प्रवेश की उचित तैयारी करता था | इस प्रकार सभी सांसारिक प्रभावों से मुक्त और निर्लिप्त रहना ही ब्रह्मचर्य है | जीवन का यह भाग सीखने और भविष्य की तैयारी का आधार माना जाता है इसमें इन्द्रीय –संयम , मन पर काबू रखना , व्यर्थ के माया – मोह, विषय-वासना और भोग-विलास से दूर रहने की शिक्षा पर अधिक बल दिया जाता था,इस अवस्था में दी गई शिक्षा के आधार पर शेष जीवन स्वत: ही अनुशासित रहता था | जीवन में नग्नता व अश्लीलता नही आ पाती थी |

आत्मनिर्भर व्यक्ति की पहचान

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 दुख और सुख तो सभी पर पड़ते हैं इसलिए अपना पौरूष मत छोड़ों क्योंकि हार-जीत तो केवल मन के मानने अथवा न मानने पर ही निर्भर होती है। स्वावलंबी मनुष्य सफलता या असफलता की परवाह किए बिना अनवरत प्रयासरत रहते हैं और बाधाओं, विघ्नों को चीरते हुए अपना मार्ग प्रशस्त करते जाते हैं।कंटाकाकीर्ण पथ पर दृढ़ता से आगे बढ़ते जाते हैं। पथ के शूल उनके कदमों को रोक नहीं पाते और अंतत: सफलता उनका वरण करती है। स्वावलम्बी या आत्मनिर्भर व्यकित ही सही अर्थो में जान पाता है कि संसार में दुःख पीड़ा क्या होते है तथा सुख- सुविधा का क्या मूल्य एव महत्त्व हुआ करता है |वह ही समझ सकता है कि मान अपमान किसे कहते है ? अपमान की पीड़ा क्या होती है ? परावलम्बी व्यक्ति को तो हमेशा मान-अपमान की चिन्ता त्याग कर , व्यक्ति होते हुए भी व्यक्तित्वहीन बनकर जीवन गुजार देना पड़ता है | एक स्वतंत्र व स्वावलम्बी व्यक्ति ही मुक्तभाव से सोच-विचार कर के उचित कदम उठा सकता है | उसके द्वारा किए गे परिश्रम से बहने वाले पसीने की प्रत्येक बूंद मोती के समान बहुमूल्य होती है | स्वावलम्बन हमारी जीवन – नौका की पतवार है | यह ही हमारा पथ – प्र...

महानता की ओर

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करूणा रक्षा में सहायक है – भगवान ने करूणा की भावना मनुष्य को इसलिए दी है ताकि यह  संसार बना रहे | अगर कोई राक्षस किसी बेकसूर को मारे, या किसी की रोटी छीने तो यह करूणा आदमी को प्रेरणा देती है कि बेकसूर की रक्षा हो | न्याय की रक्षा करना धर्म है | दयावान किसी को कष्ट में देखकर चुपचाप नहीं बैठ सकता | उनकी आत्मा उसे मज़बूर करती है कि दयावान दया करने से पहले अपना हानि-लाभ निश्चित करे | यहाँ तक कि वह किसी के प्राण बचाकर भी उसके बदले उससे कुछ नहीं चाहता | दया निस्वार्थ ही होती है | करुणा से महानता की ओर – संसार में जितने भी महान इन्सान हुए हैं, सबके जीवन में करूणा का अंग अवश्य रहा है | भगवान बुद्ध ने राजपाट छोड़कर दुखी लोगों के दुःख दूर करने में अपना जीवन लगा दिया | नानक ने संसारिकता त्यागकर ही महानता अर्जित की | गाँधी जी ने अपनी वकालत त्यागकर देशवासियों के लिए कर्म किया, तभी सारे देश ने उन्हें अपना बापू माना | वास्तव में जब भी कोई व्यक्ति अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर जनहित का आचरण करता है, वह हमारे लिए पूज्य बन जाता है |

मन के जीते जीत है ,मन के हारे हार

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मन के दो पक्ष : आशा-निराशा – धुप-छाँव के समान मनव-मन के दो रूप हैं – आशा-निराशा | जब मन में शक्ति, तेज और उत्साह ठाठें मारता है तो आशा का जन्म होता है | इसी के बल पर मनुष्य हज़ारों विपतियों में भी हँसता-मुस्कराता रहता है |निराश मन वाला व्यक्ति सारे साधनों से युक्त होता हुआ भी युद्ध हार  बैठता है | पांडव जंगलों की धुल फाँकते हुए भी जीते और कौरव राजसी शक्ति के होते हुए भी हारे | अतः जीवन में विजयी होना है तो मन को शक्तिशाली बनाओ | मन को विजय का अर्थ – मन की विजय का तात्पर्य है – काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार जैसे शत्रुओं पर विजय | जो व्यक्ति इनके वश में नहीं होता, बल्कि इन्हें वश में रखता है, वह पुरे विश्व पर शासन कर सकता है | स्वामी शंकराचार्य लिखते हैं – “जिसने मन जो जीत लिया उसने जगत को जीत लिया |”  मन पर विजय पाने का मार्ग – गीता में मन पर नियंत्रण करने के दो उपाय बाते गए हैं – अभ्यास और वैराग्य | यदि व्यक्ति रोज़-रोज़ त्याग या मोह-मुक्ति का अभ्यास करता रहे तो उसके जीवन में असीम बल बल आ सकता है |     मानसिक विजय ही वास्तविक वियज – भारतवर्ष ने विश्व को ...

आध्यात्म द्वारा जीवन में समता

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आध्यात्म द्वारा जीवन में समता मनुष्य का स्वभाव है,कुछ न कुछ पकड़ने का अपनी पहचान बनाने का,अपने को उस गुड फीलिंग में रखने का।   ये मन की आदत है ,कोई न कोई चीज़ को पकड़ने का और उसको मैं और मेरे  के अंतर्गत ,लेने का इससे वह सुरक्षित महसूस करता है। पर आध्यात्म हमे सिखाता है निश्चय बुद्धि बनो,मन के इस मानसिक खेल से छूटो(become No Mind ,conditioning से छूटो) ।  मन प्रयास करता है सब कुछ पा लू ,सब कुछ जान लू ,अपना प्रबंध कर लू ,सुरक्षित हो जाऊं। पर अध्यात्म कहता है सब कुछ पहले जान लेने से खेल का मज़ा ही ख़तम हो जाएगा। यह जीवन रियल नहीं रहेगा। जीवन में मिलने वाली शिक्षाएं, जीवन में गहरी नहीं समाऐंगी(Life is a school & we are all students) । जीवन में अचानक कुछ मिल जाए तो जो उसका मजा कुछ और ही होता है। उत्सुकता होती है, वह भी खत्म हो जाएगीी(Life is full of surprises & opportunities & we are here to enjoy every moment of life).साथ ही साथ हमारा यह जीवन सिर्फ हमारा नहीं बल्कि हम एक दूसरे पर निर्भर हैं सूक्ष्म रीति से, यह हमारे जीवन को संपूर्ण और सुंदर बनाता...

ईश्वरीय प्रेरणाएँ

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हम आत्मा है,मूल रूप में सम्पूर्ण पवित्र है। अभी इस पुरुषार्थी ब्राह्मण जीवन में  सहज ज्ञान और राजयोग के द्वारा हम आत्मा की दैहिक वृतियों को खत्म कर रूहानी अभिमानी बन रहे है।  किसी ने अपने सफेद कागज पर बहुत-बहुत दाग लगाए, बार-बार लगाया मिटाया, तो असर पड़ेगा ?   कोई  एक दम कोरा कागज़ हो, और मिटाया,छुपाया दाग वाला कागज हो फर्क तो होगा ना। इसका सीधा असर विल पावर पर पड़ता है। इसलिए उन भूलों  को फुलस्टॉप लगा कर सच्चे दिल से अपनी त्रुटियों का विकरण अब  बाप को देना है । भले किसी से मदद लेनी पड़े, र अब परिवर्तन करना ही है खुद को। अभी ठीक है पुण्य जमा है तो सीखने का समय  है। पश्चाताप सजाओ का पीरियड(period)आये, उससे पहले अपनी राजधानी रॉयल फैमिली(family)तैयार हो जाए।इतनी  सत्यता की शक्ति भर जाए, इतना निश्चय हो जाए बाप के आने जाने की गुह्य गति पर कि हम अपने भाग्य के रचयिता बन जाये कि कभी फ़रियाद न करनी पड़े, किसी की पूजा न करनी पड़े। और नीचा कार्य न करना पड़े। समान साथियों का अपना संगठन बन जाये। अब झुकना न पड़े, किसी की पूजा न...

Short of Divine Virtues and full of flaws OR Full already.

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Children says.."Hum neech papi.. Mujh nirgun haare mein koi gun naahi..." Father says.."Nahi bachche,Adhikari ho..Saare gun hai ..saari kalayein hai..jo baap ke gun wai bacchon ke gun"  Leave past experiences, past faults, limited ness and see yourself flying, shining.. , small acts of generousity will set yourself in a high stage. Even in devotion it is said, thoda sa daan punya ishwar arth karo, do ghadi uska naam japo. Only this much is needed now on sangamyuga,believe me! Rest all which is needed is right attitude of living during the whole day Which mostly includes being attentive for your responses and behaviour towards  others,am I being kind & fair towards others. Am I full of good wishes & feelings for others. Remain aware of your part and role.Keep on Forgetting Big titles & positions regularly in between different periods of the day. And Play your part well. We are now part of a Big world family, we are here to be' just 'to...

We are Independent or Interdependent?

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Everything in existence is interdependent, so you cannot be absolutely free on the outside —and there is no need, either. Enjoy this interdependence. Don’t call it bondage. Even the smallest grass leaf is related to the greatest star. But in the inner world, you can be absolutely free. So, the whole question is of the inner. And then you will not feel sad and rebellious; there is no need. Understand that the outer interdependence is a must, it is inevitable; nothing can be done about it. Accept it joyously, not as a resignation. This is our universe; we are part of it. The ego is a false entity; we are not separate, how can we have egos? It is good as far as language is concerned; it is utilitarian to use the word ‘I’, but it has no substance in it. It is pure shadow, utterly empty.